गाय को राष्ट्रमाता घोषित करे केंद्र सरकार
चेंबूर में गीता जयंती महोत्सव का आयोजन
मुंबई। श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर स्वामी हरि चैतन्य पुरी महाराज ने कहा कि गंगा, गाय, गीता, गायत्री, गोविंद ये पांचों भारतीय संस्कृति की महान धरोहर है। चेंबूर ( पश्चिम ) तिलक नगर स्थित लोक प्रभा सोसायटी में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते उन्होंने कहा कि यदि हम पाँच में से किसी एक की भी शरण ले लें तो मानव का कल्याण सुनिश्चित है। गाय सम्पूर्ण विश्व की माँ है। अन्य देशों के विचारकों ने भी इसको स्वीकार किया है और वह उसे अपनाने का प्रयास कर रहे हैं, परंतु हम भारतवासी सहज में प्राप्त इन सभी का महत्व नहीं समझकर इनके लाभ से वंचित रह रहे हैं। भारतवर्ष में गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा प्राप्त होना चाहिए। श्री कृष्ण व श्री राम के अवतारों ने जिस गाय की पूजा, सेवा करके उसकी महिमा को प्रतिष्ठापित किया, आज उसी हमारे देश में गाय की दुर्दशा व गौ हत्या एक निंदनीय व शर्मनाक अपराध है, जिस पर केंद्र सरकार को कानून बनाकर पूर्णतया प्रतिबंध लगाना चाहिए। गौ माता की जय जयकार करें लेकिन दूध निकाल कर उसे गंदगी व डंडे खाने को छोड़ दे तो यह कैसी जय जय कार है। संकल्प लें कि गाय माता को आवारा पशु नहीं कहेंगे व नहीं कहलायेंगे।
उन्होंने कहा कि श्रीमद भगवत गीता कर्म, भक्ति व ज्ञान के समन्वय का संदेश देती है। कर्म ही पूजा है कहने की अपेक्षा कर्म भी पूजा बन सकता है। जिस कार्य के साथ विचार, विवेक या ज्ञान ना हो ऐसा हर कार्य पूजा कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता। बिना बिचारे किया हुआ कर्म तो पश्चाताप, ग्लानि व शर्मिन्दगी के अलावा कुछ भी प्रदान नहीं कर सकेगा। कर्म के साथ यदि ज्ञान व भक्ति का सुन्दर समन्वय स्थापित कर दिया जाये तो जहाँ एक ओर हमारा हर कर्म पूजा कहलाने का अधिकारी हो सकेगा, वहीं हमारे जीवन का सौन्दर्य निखर उठेगा और जिस सच्चे सुख व आनंद से लाख प्रयास करने के बावजूद वंचित थे, उसे प्राप्त करने के अधिकारी बन जाऐंगे। हमारा जीवन उच्चता, दिव्यता व महानता से भर उठेगा। इस लिए जीवन में श्रम व श्रद्धा का अनूठा संगम स्थापित करें।

हरि चैतन्य पुरी महाराज ने कहा कि संसार में कोई भी व्यक्ति रूप, धन, कुल या जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मों से महान बनता है। यदि कुल से महान होते तो रावण जैसा महान कौन होता। रूप से ही महान होते तो अष्टावक्र, भगवान गणेश, सुकरात जैसे व्यक्ति कभी महान नहीं बन पाते। कई बार हो सकता है कि वर्तमान में किसी को देखकर लगे कि इसने तो कोई महान कर्म नहीं किये तो अवश्य पूर्व में किये होंगे, हमें महानता के कार्य करने चाहिए और स्वयं को कभी महान नहीं समझना चाहिए। जीवन में विनम्रता, सरलता, सादगी व संयम को अपनाना चाहिए। कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए कि संसार में लोग हमें याद ही नहीं बल्कि अच्छाई से सदैव याद रखें। बहुत से लोग मर कर भी जिंदा रहते हैं तथा बहुत से जीवित भी मृतक तुल्य जीवन जीते हैं। जीवन में किसी का तिरस्कार नहीं करें, जो भी देखे, सुनें या पढ़ें उस पर विचार करें। किसी को भी ऐसा कुछ नहीं बोलें जिससे किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे। हमारे ह्रदय उदार व विशाल होने चाहिए। आज मनुष्य का मस्तिष्क विशाल व ह्रदय सिकुड़ता चला जा रहा है। अकड या अभिमान नहीं होना चाहिए। दुश्मन को हराने वाले से भी महान वह है जो उन्हें अपना बना लें। मनुष्य को अपने जीवन को श्रेष्ठ व मर्यादित बनाने के लिए जहां से अच्छाई मिले वहां से ग्रहण करके अपने जीवन को समाज के लिए कल्याणकारी श्रेष्ठ व मर्यादित बनाना चाहिए। अपने धारा प्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध व भाव विभोर कर दिया।
